|| INDIA'S SOIL ||
SOIL - लैटिन शब्द सोलम ( SOLAM )से बना है। जिसका अर्थ FLOOR (फर्श ) या भूपपर्टी (पृथ्वी ) . एग्रीकल्चर का अध्ययन पैडालॉजी में किया जाता है।
मृदा निर्माण के कारक | मृदा के पोषक तत्व
- पैतृक पदार्थ | कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन ( C.H.O. )
- जलवायु | नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश (N.P.K. )
- समय | कैल्शियम, मैगनेशियम, सल्फर (CA.MG.S. )
- जीव | मैगनीज, जस्ता, लोहा ( MN.MO.CU. )
- वनस्पति | कोबाल्ट,मोलीबिगडम,कॉपर ( CO.MO.CU. )
मृदा संरचना :
एक आदर्श मृदा में निम्न होते है।- 25% मृदा वायु
- 45% खनिज पदार्थ
- 5% कार्बनिक पदार्थ
- 25% मृदा जल
नोट -- मृदा जल तीन प्रकार के होते है।
(१ ) गुरुत्वाकर्षण जल
(२) आद्रता ग्राही जल
(३) केशिका जल ( पादप को प्राप्त जल)
--- राष्ट्रीय कृषि अनुंसधान परिषद ने मृदा के कणो को छः भागो में बांटा है।
(१ ) क्ले
(२) सिल्ट
(३) सेंड
(४) कॉर्स सेंड
(४) फाइन ग्रेवल
(५) ग्रेवल
-- पादप में उचित वनस्पतिक वृद्धि करने के लिए लगभग 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है
-- पादप केशिका जल को प्राप्त करता है।
-- विश्व में सामान्य रूप से तीन प्रकार की मृदा पायी जाती है।
(१) ZONAL SOIL ( क्षेत्रीय मृदा ) -- वह मृदा जो उसी स्थान पर निर्मित हुई है जैसे - भारत की पर्वतीय मृदा व्
काली मृदा
(२) INTRAZONAL SOIL ( अंतःक्षेत्रीय मृदा ) - वह मृदा जो जलवायु के प्रभाव स्वरुप मूल मृदा से परिवर्तित
होकर दूसरी प्रकार की मृदा बनी है जैसे - काली से लाल या लेटेराइट मृदा बनना।
(३) AZONAL SOIL ( अक्षेत्रीय मृदा ) -- वह मृदा जो दूसरे स्थान से आकर निर्मित हुई है। जैसे - जलोढ़
मृदा जो सबसे उपजाऊ मृदा है।
--- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (दिल्ली ) ने भारतीय मृदा को कुल आठ (8 ) मुख्य भाग व् 27 उपभागों में
विभाजित है।
(१) जलोढ़ मृदा / कांप मृदा / एल्यूवियल मृदा / दोमट मृदा / कच्छारी मृदा
-- भारत में सर्वाधिक भाग पर पायी जाती है। यह लगभग 43 % भाग पर पायी जाती है।
-- इसमें लगभग सभी प्रकार की फसल आसानी से उत्त्पादित की जाती है लेकिन गन्ना,गेंहू ,चावल के लिए यह
अधिक उपयोगी है।
-- पुरानी जलोढ़ को बांगर व् नवीन जलोढ़ मृदा को खादर कहते है।
-- जलोढ़ मृदा भारत के विशाल मैदान और नदी घाटियों के किनारे पायी जाती है।
-- यह अत्यधिक उपजाऊ मृदा है। यह एक क्षेत्रीय मृदा है।
(२) लाल मृदा
-- यह भारत के 18%भाग पर पायी जाती है।
-- इस मृदा का निर्माण काली मृदा पर तापमान व् वर्षा के परिणामस्वरूप हुआ है।
-- यह निक्षालित मृदा है यह अपेक्षाकृत कम उपजाऊ मृदा है।
-- इस मृदा का लाल रंग फैरस आक्साइड की वजह से है।
-- इस मृदा का विस्तार प्रायद्वीपीय पठार पर है।
-- इसमें दलहन वाली फसल आसानी से ली जा सकती है।
(३) काली मृदा
-- इस मृदा को रैगुर मृदा भी कहते है।
-- इसमें क्ले की प्रधानता होती है। अतः इसमें मिटटी के कण अपेक्षाकृत अधिक बारीक़ होते है। इसलिये इस
मृदा की जल धारण क्षमता सर्वाधिक होती है। अतः इस मृदा को बार बार सिंचित करने की आवश्यकता
नहीं होती है।
-- यह मृदा सुखने पर दरारों में विभक्त हो जाती है।
-- इस मृदा में लौह की प्रधानता होती है इस मृदा को कर्नाटक में चर्नोजम मृदा कहते है।
-- चर्नोजम मृदा कॉफी उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
-- कर्नाटक राज्य भारत के दो तिहाई उत्पादन करता है।
-- काली मृदा सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय पठार पायी जाती है।
-- यह मृदा कपास ,चन्ना ,सोयाबीन ,व् कॉफी उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ मृदा है।
-- यह मृदा भारत के 15%भाग पर पायी जाती है।
-- यह एक क्षेत्रीय मृदा है।
(४) लेटेराइट मृदा
-- इस मृदा का रंग ईंट की भांति होता है।
-- यह मृदा वहां पाई जाती है जंहा अधिक वर्षा व् अधिक तापमान होता है। इसीलिये इसे अत्यधिक निक्षालित
मृदा कहते है।
-- यह मध्यम उपजाऊ मृदा है।
-- इसका विस्तार विंध्यांचल , सतपुड़ा , व् नीलगिरी आदि स्थानों पर पाया जाता है।
-- यह मृदा काजू ,रबर व् चाय के लिए उपर्युक्त हे।
(५) मरुस्थलीय मृदा
-- इस मृदा में सेंड की प्रधानता होती है अतः इसकी जल धारण क्षमता सबसे कम होती है।
-- यह मृदा पश्चिम राजस्थान व् शुष्क क्षेत्रो में पाई जाती है।
-- यह पानी के अभाव में अनुत्पादक होती है।
-- सिंचित करने पर उत्पादित हो जाता है।
-- इसमें मोटे अनाज वाली फसल आसानी से हो जाती है।
(६) पीट व् डेल्टाई मृदा
-- यह मृदा नदियों के मुहाने पर पायी जाती है।
-- इसमें कार्बनिक पदार्थो की अधिकता होती है।
-- इसमें सुंदरी वृक्ष व् मैंग्रोव प्रकार की अधिकता होती है।
(७) पर्वतीय मृदा
-- यह एक क्षेत्रीय मृदा है।
-- हिमालय पर्वतमाला पर इसका विस्तार है।
-- यह अपरिपक़्व मृदा है।
-- इसमें जीवांश पदार्थ की अधिकता होती है।
-- यह मृदा केसर ,चाय ,सेव आदि के लिए उपर्युक्त है।
(८) लवणीय व् क्षारीय मृदा /रेह / कल्लर/ ऊसर
-- इस प्रकार की मृदा सिंचित व् नहरी क्षेत्रो में होता हे।
-- इसमें धरातल के नीचे से जल के साथ मृदा के ऊपरी परत पर जल का वाष्पीकरण होने से लवण ऊपर
आ जाता हे।
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